शीर्ष कोर्ट ने अदालतों में महिलाओं के लिए इस्तेमाल होने वाले आपत्तिजनक शब्दों पर रोक लगाने के लिए बड़ा कदम उठाया है। इसके तहत कोर्ट ने हैंडबुक ऑन कॉम्बैटिंग जेंडर स्टीरियोटाइप्स लॉन्च की है। यह हैंडबुक न्यायाधीशों को अदालती आदेशों और कानूनी दस्तावेजों में अनुचित लिंग शब्दों के इस्तेमाल से बचने में मददगार साबित होगा।
सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीश पीठ ने हैंडबुक पर घोषणा की
सीजेआई डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने बुधवार को हैंडबुक के अनावरण की घोषणा की। इस हैंडबुक को तीन महिला जजों की एक समिति ने तैयार किया है। इन जजों में जस्टिस प्रभा श्रीदेवन और जस्टिस गीता मित्तल और प्रोफेसर झूमा सेन शामिल हैं। वहीं, इस समिति की अध्यक्षता कलकत्ता हाईकोर्ट की जस्टिस मौसमी भट्टाचार्य की ने किया था। हैंडबुक में कर्तव्यनिष्ठ पत्नी, आज्ञाकारी पत्नी, फूहड़, स्पिनस्टर जैसे शब्दों का इस्तेमाल भी नहीं करने के लिए कहा गया है। इसमें कहा गया है कि अगर कोई न्यायाधीश मामलों पर फैसला करते समय या फैसले लिखते समय लोगों अथवा समूहों के बारे में पूर्वकल्पित धारणाओं पर भरोसा करता है, तो इससे होने वाला नुकसान बहुत बड़ा हो सकता है। इसमें अफेयर को शादी के इतर रिश्ता, प्रॉस्टिट्यूट को सेक्स वर्कर, अनवेड मदर (बिनब्याही मां) को मां चाइल्ड प्रॉस्टिट्यूड को तस्करी करके लाया बच्चा एफेमिनेट (जनाना) की जगह जेंडर न्यूट्रल शब्दों का प्रयोग, कॉन्क्युबाइन (रखैल) को ऐसी महिला जिसका शादी के इतर किसी पुरुष से शारीरिक संबंध हो, जैसे शब्दों से बदला गया है। समलिंगी या फैगोट के बजाय न्यायाधीशों को व्यक्ति के यौन रुझान (उदाहरण के लिए, समलैंगिक या उभयलिंगी) का सटीक वर्णन करना चाहिए।