सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस राजेश बिंदल ने शनिवार को कहा लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने और संवैधानिक लक्ष्यों की निरंतर प्राप्ति के लिए न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास व भरोसा बनाए रखना जरुरी है। प्रतिभागियों से न्यायमूर्ति बिंदल ने कहा कि न्यायिक प्रणाली भी आधुनिक समय में कई चुनौतियों का सामना कर रहा है। समय की मांग है कि न्यायिक प्रणाली चुनौतियों का तेजी से जवाब देने के लिए सक्रिय हो। वह झारखंड न्यायिक अकादमी रांची में आयोजित ” न्यायिक प्रणाली में जनता का विश्वास और भरोसा बनाए रखना” विषय पर राज्य स्तरीय सम्मेलन में बोल रहे थे।
उन्होंने ट्रायल कोर्ट के जजों से बातचीत करते हुए कहा कि मामलों के तेजी से निपटान के लिए नए उपकरण और तकनीक अपनानी चाहिए। इसके साथ ही नए तकनीक का इस्तेमाल करने के लिए तैयार रहना चाहिए। जस्टिस बिंदल ने जेलों में कैदियों और विचाराधीन कैदियों की बढ़ती संख्या की समस्याओं के बारे में बताया। इस बात पर जोर दिया कि जेल में पैरा लीगल वालंटियर्स को कैदियों के मामलों को आगे बढ़ाने के लिए संवेदनशील बनाया जाना चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने ट्रायल कोर्ट की भूमिका और महत्व की सराहना की। जस्टिस बिंदल ने इस बात पर भी प्रकाश डाला कि ट्रायल कोर्ट के जजों के पास इस मायने में बढ़त है कि उन्हें वादियों से बातचीत करने और केस को बेहतर तरीके से समझने का अवसर मिलता है।
जस्टिस बिंदल ने मामलों के निपटान में देरी के बारे में बात करते हुए कहा कि इस समस्या का समाधान के लिए उच्च न्यायालय स्तर पर कार्य योजनाओं की तैयारी, केस प्रबंधन और मुकदमेबाजी प्रबंधन प्रणाली जैसे अभिनव विचारों को विकसित करने के साथ अपनाना भी समय की मांग है। न्यायिक प्रणाली में सूचना और प्रौद्योगिकी के उपयोग के बारे में जस्टिस बिंदल ने इस बात पर जोर दिया कि ई-जेल, ई-कोर्ट और इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से जमानत बांड नई चीजें हैं, जो सामने आ रही हैं। इन सभी को तलाशना समय की मांग है। जिससे यह देखा जा सके कि इन नई चीजों को न्यायिक प्रणाली में अपनाया जा सकता है अथवा नहीं।
सोशल मीडिया के बारे में बात करते हुए जस्टिस बिंदल ने न्यायिक अधिकारियों को सोशल मीडिया के इस्तेमाल के प्रति आगाह किया। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि हमें निजी और पेशेवर इस्तेमाल में सोशल मीडिया के इस्तेमाल एवं उसे लागू करने के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सम्मेलन में झारखंड उच्च न्यायालय के सभी न्यायाधीश, महाधिवक्ता और झारखंड के जिला न्यायालयों के न्यायिक अधिकारी और अधिवक्ता शामिल हुए। वहीं, नए आपराधिक कानूनों पर विचार-विमर्श के साथ समारोह का समापन हुआ। जो 01/07/2024 से लागू होने जा रहे हैं।
वादियों को विनम्र, गरिमापूर्ण व्यवहार और न्याय के वितरण में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता मिले : जस्टिस जॉयमाल्या बागची
समारोह में कलकत्ता हाईकोर्ट के जज जस्टिस जॉयमाल्या बागची ने दलील सौदेबाजी के अधिक इस्तेमाल की जरूरत पर विचार-विमर्श किया। उन्होंने कहा कि भारत में दलील सौदेबाजी को गति नहीं मिल पा रही है। क्योंकि दलील सौदेबाजी के साथ कलंक जुड़ा हुआ है। लेकिन दलील सौदेबाजी को अपराधों के संयोजन के साथ सक्रिय रूप से जोड़ा जाना चाहिए। जस्टिस बागची ने जजों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले सोशल मीडिया और जजों पर इस्तेमाल किए जाने वाले सोशल मीडिया के बीच अंतर के बारे में बात की। उन्होंने इस अंतर को उजागर करते हुए कहा कि कि सोशल मीडिया हैंडल का इस्तेमाल गैर-विवाद के सिद्धांत के साथ किया जाना चाहिए। जनता का भरोसा और विश्वास इस बात से बढ़ता है कि वादियों को निष्पक्ष, विनम्र, गरिमापूर्ण व्यवहार और न्याय के वितरण में प्रक्रियात्मक निष्पक्षता मिले।
लंबित मामले न्यायपालिका में जनता के विश्वास और भरोसे के निर्माण में एक बड़ी बाधा : जस्टिस एस चंद्रशेखर
लंबित मामलों की समस्या पर चर्चा करते हुए झारखंड उच्च न्यायालय के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एस चंद्रशेखर ने कहा कि लंबित मामले न्यायपालिका में जनता के विश्वास और भरोसे के निर्माण में एक बड़ी बाधा हैं। उन्होंने सिंगापुर, मलेशिया और सर्बिया जैसे देशों में मामलों के त्वरित निपटान के लिए अच्छी प्रथाओं का हवाला दिया। इसके साथ ही यह भी सुझाव दिया कि पायलट परियोजनाओं के माध्यम से अच्छी प्रथाओं को लागू किया जाना चाहिए। उन्होंने न्यायिक अधिकारियों को पुराने मामलों के लिए कार्य योजना की आवश्यकता पर भी जोर दिया।