हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों की बिक्री पर उत्तर प्रदेश में रोक लगाने समेत हलाल सर्टिफिकेट जारी करने वाली संस्थाओं पर एफआईआर दर्ज किए जाने के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई हुई। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को नोटिस जारी किया। दरअसल चेन्नई के हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने यूपी सरकार और एफएसएसएआई के फैसले को गलत बताते हुए याचिका दाखिल की। जिसमें याचिकाकर्ता ने दलील दी कि इस फैसले से पूरे देश पर असर होगा। इसलिए सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में होनी चाहिए। बाते दे कि उत्तर प्रदेश में नवंबर 2023 में हलाल सर्टिफिकेट वाले खाद्य उत्पादों पर रोक लगा दी गई थी। सरकार की ओर से इस संबंध में जारी आदेश में कहा गया था कि राज्य में अब हलाल सर्टिफिकेट वाले उत्पादों के निर्माण, भंडारण, वितरण और बिक्री को तत्काल प्रभाव से बैन कर दिया गया है। वही, यूपी सरकार का कहना है कि सिर्फ मीट की बिक्री पर ही ऐसे सर्टिफिकेशन की जरूरत होती है। तमाम पैकेज्ड फूड पर ऐसे सर्टिफिकेशन की जरूरत नहीं है।
क्या है हलाल सर्टिफिकेशन
हलाल सर्टिफिकेशन इस्लाम के अनुसार दिया जाता है। हलाल सर्टिफिकेशन ऐसे प्रोडकट्स है, जिन्हें मुस्लिम समुदाय के लोग इस्तेमाल कर सकते हैं। मुस्लिम लोग हलाल प्रोडक्ट्स का ही इस्तेमाल करते हैं। दरअसल जिस जानवर को जिबह करके मारा जाता है। उसके मांस को हलाल कहा जाता है। जिबह करने का मतलब ये होता है कि जानवर के गले को पूरी तरह काटने की बजाय उसे रेत दिया जाता है। जिसके बाद उसके शरीर का लगभग सारा खून बाहर निकल जाता है। ऐसे ही जानवरों के मांस को हलाल मीट वाला सर्टिफिकेशन मिलता है। हलाल सर्टिफाइड होने का मतलब है कि मुस्लिम समुदाय के लोग ऐसे प्रोडक्ट्स को बिना किसी संकोच खा सकते हैं।
कैसे हुई हलाल सर्टिफिकेशन शुरु
देश में पहली बार 1974 में हलाल सर्टिफिकेशन की शुरुआत की गयी। हलाल सर्टिफिकेशन के लिए कोई सरकारी संस्था नहीं है। इस बाबत प्राइवेट कंपनियां और संस्थाएं ऐसे सर्टिफिकेशन को जारी करते हैं। कुछ संस्थाएं ऐसे प्रोडक्ट्स पर भी ये सर्टिफिकेशन दे रही हैं, जिन्हें बहुत से लोग रोजाना इस्तेमाल करते हैं।