प्रार्थी से संबंधित आपराधिक मामले में गवाहों को उपस्थित कराने के लिए न्यायालय द्वारा उचित कार्रवाई नहीं की गई, तो हो सकती कार्रवाई
झारखंड हाईकोर्ट ने शुक्रवार को एक प्रार्थी द्वारा जनहित याचिका दायर करने में अपने आपराधिक मामला के बारे में नहीं दर्शाए जाने को को गंभीरता से लिया है। कोर्ट ने निचली अदालत से प्रार्थी कुमार मनीष से संबंधित आपराधिक मामले के पूरे रिकॉर्ड को प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। मामले की सुनवाई चीफ जस्टिस संजय कुमार मिश्रा व जस्टिस आनंद सेन की खंडपीठ में हुई। कोर्ट ने मामले में निचली अदालत द्वारा प्रार्थी को बरी किए जाने संबंधी आदेश का अवलोकन करने के बाद मौखिक टिप्पणी की। जिसमें कहा ऐसा प्रतीत होता है कि संबंधित मामले में गवाहों को उपस्थित कराने के लिए न्यायालय द्वारा उचित कार्रवाई नहीं की गई। इसलिए मामले की गंभीरता को देखते हुए प्रार्थी के आपराधिक मामलों से संबंधित फाइल कोर्ट में अगली सुनवाई में प्रस्तुत किया जाए। मामले की अगली सुनवाई 15 सितंबर को होगी। इससे पहले मामले में राज्य सरकार एवं प्रतिवादी वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार की ओर से पीआईएलकर्ता कुमार मनीष के बारे में बताया गया कि उनके खिलाफ दो आपराधिक मामले दर्ज हुए थे ,जिसकी सूचना उनके द्वारा याचिका में नहीं दी गई थी ।इसलिए इस जनहित याचिका को खारिज किया जाना चाहिए। इस पर प्रार्थी की ओर से बताया गया कि उन्हें संबंधित मामले में बरी कर दिया गया है, जिसके बाद कोर्ट ने प्रार्थी के संबंधित अपराधिक मामले के पूरे रिकॉर्ड को निचली अदालत से प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। दरअसल यह मामला भ्रूण जांच को लेकर पूर्वी सिंहभूम के तत्कालीन सिविल सर्जन के द्वारा अल्ट्रासाउंड क्लिनिक को दिए गए रजिस्ट्रेशन का विरोध करने वाले जनहित याचिका से जुड़ा है। मामले में पूर्व सिविल सर्जन डॉक्टर महेश्वर प्रसाद की ओर से अधिवक्ता ऋतु कुमार एवं अल्ट्रासाउंड क्लीनिक संचालकों की ओर से वरीय अधिवक्ता अजीत कुमार ने पैरवी की। उनकी ओर से कोर्ट को बताया गया की वर्तमान में उपायुक्त, जमशेदपुर द्वारा पूर्वी सिंहभूम के सभी 27 अल्ट्रासाउंड क्लीनिक संचालकों को लाइसेंस जारी कर दिया गया है, इसलिए अब यह विषय विवाद में नहीं है। कोर्ट ने मामले में पूर्व सिविल सर्जन को शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया।