स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना में छह हजार करोड़ रुपए से अधिक राशि खर्च किए जाने के बाद राज्य सरकार द्वारा इसे बंद करने पर झारखंड हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान आपत्ति जताई है। झारखंड हाईकोर्ट के जस्टिस सुजीत नारायण प्रसाद की अध्यक्षतावाली खंडपीठ में बुधवार को संतोष कुमार सोनी की ओर से दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान भू-राजस्व सचिव व्यक्तिगत रूप से हाजिर हुए। उन्होंने कोर्ट को परियोजना के लिए जमीन अधिग्रहण के संबंध में जानकारी दी। कोर्ट ने उन्हें शपथ पत्र दाखिल कर बताने को कहा है कि अभी इस प्रोजेक्ट के लिए और कितने जमीन के अधिग्रहण का काम बचा है। इसके साथ ही कितनी राशि आपके पास बची है। वहीं, जल संसाधन विभाग के अधीक्षण अभियंता की ओर से कोर्ट को बताया गया की जमीन अधिग्रहण पर स्थानीय ग्रामीणों के विरोध के कारण इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में बाधा हो रही है। इस पर कोर्ट ने मौखिक कहा कि आपस में मिलजुल कर इसका समाधान निकाला जाना चाहिए। इस प्रोजेक्ट के लिए 6100 करोड़ रूपय खर्च हो चुके है। इतनी राशि खर्च होने के बाद इसे आधा में रोका नहीं जाना चाहिए। मामले की अगली सुनवाई 20 मार्च निर्धारित होगी।
प्रार्थी संतोष कुमार सोनी ने इस संबंध में जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने याचिका के माध्यम से अदालत को बताया है कि 1978 में बिहार, बंगाल और उड़ीसा तीनों राज्यों के सहमति के उपरांत इस बहुउद्देशीय परियोजना की शुरुआत की गई थी। केंद्र सरकार ने इस योजना के पैसा भी आवंटित कर दिया। लगभग 6100 हजार करोड़ रुपया खर्च किया गया। इस परियोजना के लिए जो जमीन अधिग्रहित किया गया, उसका मुआवजा दे दिया गया है। काम के लिए कंपनी को कार्य आदेश दिया गया है। उसके बाद अचानक झारखंड सरकार वर्ष 2020 में इस परियोजना का कार्य बंद कर दिया। प्रार्थी का कहना है कि राज्य सरकार का ही आदेश गलत है। राज्य सरकार इस तरह से कार्य को बंद नहीं करवा सकती है। पूर्व की सुनवाई में कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा था कि 6 हजार करोड़ रुपए से अधिक की राशि खर्च करने के बाद खरकई डेम प्रोजेक्ट को वर्ष 2020 को क्यों बंद कर दिया गया।
हाईकोर्ट ने कहा, छह हजार करोड़ रुपये खर्च करने के बाद स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना को रोकना उचित नहीं, निकालें समस्या का समाधान, जाने क्या है पूरा मामला
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