उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त ना हो जाए…. स्वामी विवेकानंद का मूलमंत्र आज भी युवाओं के लिए प्रासंगिक है। विवेकानंद की यह इच्छा थी कि शिक्षा को गरीबों के पास जाना चाहिए। उनका मानना था कि जब तक लाखों लोग भूख और अज्ञानता से ग्रस्त हैं। तब तक हर उस व्यक्ति को देशद्रोही माना जाएगा, जो उसके खर्च पर शिक्षा पाकर भी उनपर कोई ध्यान नहीं देता है। ये बातें मंगलवार को अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय पत्रकारिता विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ मुकेश कुमार ने कही। कॉलेज में आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रृंखला के तहत स्वामी विवेकानंद के पुण्यतिथि पर गोष्ठी आयोजित किए गए थे।
गोष्ठी में डॉ रणजीत कुमार ने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने जाति प्रथा, कर्मकांड, पूजा पाठ और अंधविश्वास पर करारा प्रहार करते हुए स्वतंत्र चिंतन भावना को अपनाने का आग्रह किया था। विवेकानंद को महान मानवतावादी बताते हुए उन्होंने कहा कि विवेकानंद हर जाति और दुखी व पीड़ित मानव को अपना ईश्वर मानते थे। डॉ निखिल आनंद ने कहा कि विवेकानंद उन्नति की पहली शर्त स्वाधीनता को मानते थे। विवेकानंद का कहना था कि मनुष्य को सोचने, विचारने और उसे व्यक्त करने की स्वाधीनता मिलनी चाहिए। वैसे ही खान-पान, पोशाक,पहनावा और शादी विवाह में मिलनी चाहिए। वही, फ़ारसी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ जमशेद आलम ने गोष्ठी को आगे बढ़ाते हुए स्वामी विवेकानंद के शिकागो धर्म संसद के वक्तव्य को याद किया। उन्होंने कहा कि स्वामी विवेकानंद ने संपूर्ण विश्व में अपना लोहा मनवाया.। राष्ट्रनिर्माण में स्वामी विवेकानंद की भूमिका अहम है। जिस शिक्षा से हम अपने जीवन निर्माण कर सकें, मनुष्य बन सकें, चरित्र-गठन कर सकें और विचारों का सामंजस्य कर सकें, वही वास्तव में शिक्षा कहलाने योग्य है।
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