सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता पीजी ट्रेनी डॉक्टर के साथ रेप और हत्या से जुड़े मामले पर सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग के फैसले को बरकरार रखा हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता में पीजी ट्रेनी डॉक्टर से रेप और उसकी हत्या मामले पर स्वत: संज्ञान लिया था। जिसपर सुनवाई मंगलवार को हुई। इस मामले पर चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ सुनवाई कर रही है। जहां शीर्ष अदालत में पश्चिम बंगाल सरकार का पक्ष सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल रख रहे है। इसके मद्देनजर कपिल सिब्बल ने कोलकाता दुष्कर्म व हत्या मामले में सुनवाई की लाइव स्ट्रीमिंग को रोकने का अनुरोध किया था। जिसको सुप्रीम कोर्ट खारिज कर दी हैं।
ज्ञात हो कि सुप्रीम कोर्ट ने कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में एक ट्रेनी महिला डॉक्टर के साथ रेप कर हत्या की घटना मामले में पोस्टमार्टम के लिए जरूरी एक अहम दस्तावेज नहीं होने पर 9 सितंबर को चिंता जताई थी। जिसपर कोर्ट ने पश्चिम बंगाल सरकार से एक रिपोर्ट तलब किया था। कोर्ट ने 22 अगस्त को महिला डॉक्टर की अप्राकृतिक मौत का मामला दर्ज करने में देरी को लेकर कोलकाता पुलिस पर नाराजगी जताई थी। साथ ही इस घटनाक्रम और प्रक्रियागत औपचारिकताओं के समय पर सवाल भी उठाये थे।
जनहित का मामला है, रोक नहीं लगायेगे..
तीन सदस्य पीठ ने सुनवाई को दौरान कहा कि कोर्ट सीधे प्रसारण पर रोक नहीं लगायेगी। यह जनहित से जुड़ा मामला है। कपिल सिब्बल ने पक्ष रखते हुये कहा कि चैंबर की महिला वकीलों को तेजाब से हमले और दुष्कर्म की धमकियां मिल रही हैं। जिसके बाद पीठ ने आश्वस्त करते हुये कहा कि अगर वकीलों समेत अन्य लोगों पर खतरा होगा तब कोर्ट कदम उठायेगा। वहीं, उच्चतम न्यायालय ने इस मामले की जांच में अब तक हुई प्रगति और सीबीआई द्वारा वस्तु स्थिति रिपोर्ट पर गौर किया हैं।
क्या हैं मामला..
पीजी ट्रेनी महिला डॉक्टर की 9 अगस्त को बॉडी मिली थी। कोलकाता पुलिस ने घटना के अगले दिन इस मामले में एक आरोपी को गिरफ्तार किया था। जिसके बाद कोलकत्ता हाई कोर्ट ने 13 अगस्त को कोलकाता पुलिस से जांच लेकर सीबीआई को अनुसंधान करने की जिम्मेवारी सौंपने का निर्देश दिया था। जिसके तुरंत बाद सीबीआई ने अगले दिन यानी 14 अगस्त को जांच संभाल ली थी। बता दें कि कोर्ट ने घटना को भयावह करार देते हुये प्राथमिकी दर्ज करने में देरी पर राज्य सरकार से नराजगी जाहिर किया था। जिसके बाद शीर्ष अदालत ने डॉक्टरों और अन्य स्वास्थ्य देखभाल कर्मियों की सुरक्षा के लिहाज से प्रोटोकॉल तैयार करने के लिए 10 सदस्यीय राष्ट्रीय कार्य बल (एनटीएफ) का गठन किया था।