सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि लोकतंत्र संविधान की एक अनिवार्य विशेषता है। वोट देना वैधानिक अधिकार है। इसलिए, मतदाता को उम्मीदवार की पूरी पृष्ठभूमि के बारे में जानने का अधिकार है। यह सांविधानिक न्यायशास्त्र का हिस्सा है। जस्टिस एस रवींद्र भट और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि वोट देने का अधिकार अनमोल है। यह स्वतंत्रता के लिए लंबी व कठिन लड़ाई का परिणाम था। जहां नागरिक को अपने मताधिकार का प्रयोग करने का एक अपरिहार्य अधिकार है। सुप्रीम कोर्ट ने कांग्रेस नेता के मदन मोहन राव की चुनाव याचिका दायर करने की वैधता को बरकरार रखते हुए ये टिप्पणियां की। राव वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में जहीराबाद से भारत राष्ट्र समिति के नेता भीम राव पाटिल से 6,299 वोटों से हार गए थे। जिसके बाद उन्होंने आरोप लगाया था कि पाटिल ने अपने चुनावी हलफनामे में गलत जानकारी दी। अपने खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों की जानकारी नहीं देकर नियमों का उल्लंघन किया। वही, तेलंगाना हाईकोर्ट ने 2022 में याचिका को रद्द कर दी थी। इसके बाद ही सुप्रीम कोर्ट ने आदेश पर रोक लगाते हुए हाईकोर्ट को मामले को नए सिरे से तय करने को कहा। जिसके बाद हाईकोर्ट ने चुनाव याचिका दायर करने की अनुमति दी थी। कोर्ट के फैसले से अब पाटिल के खिलाफ राव की ओर से दायर चुनाव याचिका पर विचार किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य को विरोधाभासी बताया कि लोकतंत्र संविधान का अनिवार्य पहलू होने के बावजूद भारत में वोट देने के अधिकार को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता नहीं दी गई है। इसे मात्र वैधानिक कहा गया है।