देश में चल रहे वक्फ संरक्षण अभियान के अवसर पर झारखंड में अल्पसंख्यक मामलों के जानकार एस अली ने बताया कि अपने निजि भूमि अथवा सम्पत्ति को धार्मिक एवं सामाजिक कार्य के लिए अल्लाह के नाम पर दान करना वक्फ कहा जाता है। इसके अलावा दरगाह, खानकाह, मजार, मकबरा, कब्रिस्तान, मस्जिद, मदरसा, इमामबाड़ा और मुस्लिम ऐतिहासिक इमारतें और स्थल भी वक्फ सम्पत्ति होते है। देश की आजादी के बाद भारत सरकार ने संवैधानिक प्रावधानों के तहत वक्फ सम्पत्ति के संरक्षण संवर्धन और विकास के लिए कानून का निर्माण किया। जिसमें कई महत्वपूर्ण संशोधन भी हुए है। वर्तमान में वक्फ अधिनियम 1995 (संसोधित अधिनियम 2013) लागू है। बिहार से अलग होने के बाद झारखंड में भी 27 अगस्त 2008 को वक्फ बोर्ड का गठन किया गया।
वक्फ बोर्ड गठन में नियमों का नहीं होता है अनुपालन, ना ही दिया जाता संवैधानिक अधिकर….
एस अली ने बताया कि वक्फ बोर्ड का प्रथम कार्यकाल वर्ष 2008 से 2013 को समाप्त हुई। दूसरे बार वक्फ बोर्ड का पूर्णगठन वर्ष 2014 और कार्याकाल 2019 में समाप्त हुई। लेकिन झारखंड सरकार पिछले 5 वर्षों से वक्फ बोर्ड पूर्णगठन का मामला अटकाकर रखा हुआ है। जिसके कारण वक्फ संपत्तियों के विकास और संरक्षण संवर्धन के सभी कार्य बाधित पड़े हुए है। झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड का कार्यालय वर्ष 2018 तक आड्रे हाउस के छोटे से दो कमरे के में संचालित था। जिसके बाद वर्ष 2019 से वक्फ बोर्ड का कार्यालय झारखंड हज भवन में सिफ्ट कर दिया गया है।उन्होने बताया कि वक्फ बोर्ड गठन में नियमों का अनुपालन ना होकर मनमानी होते रहा है। वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष और सदस्य को राज्य सरकार द्वारा कोई संवैधानिक अधिकार भी नहीं दिया जाता है। जबकि अन्य राज्यों में राज्य मंत्री का दर्जा दिया जाता है। यही स्थिति वक्फ बोर्ड में मुख्य कार्यपालक पदाधिकारी (सीईओ) के पदास्थापन का है। बोर्ड गठन से लेकर अबतक एक भी स्थायी सीईओ का पदास्थापन नहीं किया गया। इससे हमेशा अतरिक्त प्रभार में रखा गया, जो सीईओ आए उन्होंने भी वक्फ संपत्तियों के विकास और उत्थान के लिए कोई काम नहीं किया। जिसके कारण वक्फ सम्पत्ति के मोतवली और मैनेजिंग कमेटी मनमानी करते रहे है। जबकि वक्फ एक्ट 1995 ( संशोधित 2013) में सीईओ को कार्रवाई और अन्य निर्णय लेने का पूरा अधिकार के साथ शक्ति प्राप्त है। लेकिन किसी भी सीईओ ने ऐसे मामले पर कभी दिलचस्पी नहीं दिखाई। वर्तमान में स्थिति और भी दैनिय हो गयी है ।
दो कर्मचारी भरोसे 15 वर्षों से बोर्ड हो रहा संचालित….
एस अली ने बताया कि वक्फ बोर्ड में एक भी स्थायी कर्मचारी नहीं है। डेलीवेज के आधार पर मात्र दो कर्मचारी के भरोसे 15 वर्षों से बोर्ड चल रहा है। जबकि वक्फ बोर्ड में कर्मचारी के 12 स्वीकृत पद है। लेकिन अबतक बहाली नहीं हुई है। झारखंड को बिहार से कुल 147 वक्फ सम्पत्ति प्राप्त हुआ था। बाद में पांच वक्फ सम्पत्ति निबंधित हुई। विभिन्न जिलों को मिलाकर कुल निबंधित 152 वक्फ सम्पत्ति है। विभिन्न वक्फ सम्पत्ति से सालाना आमदनी का सात प्रतिशत अंशदान के रूप में झारखंड वक्फ बोर्ड को 15 वर्षों में मात्र 60 लाख रुपए ही प्राप्त हुआ है। जबकि नियमानुसार सालाना बोर्ड को 30 लाख प्राप्त होनी चाहिए। सीओ की अनदेखी के कारण बोर्ड को 4 करोड़ 50 लाख के राजस्व का नुकसान उठाना पड़ा है। उन्होंने बताया कि वक्फ बोर्ड द्वारा प्राप्त राशि को बेसहारा विधवा महिलाओं को वजीफा के रूप में देना है। इसके अलावा जरुरतमंद लोगों की आर्थिक उन्नति, सहयोग, शिक्षा, स्वास्थ्य समेत अन्य क्षेत्रों में भी कार्य करने के लिए किया जाना है। लेकिन पिछले 15 वर्षों में वक्फ बोर्ड द्वारा ऐसा कोई कार्य नहीं किया गया।
झारखंड वक्फ बोर्ड का अपना कोई नियमावली नहीं….
झारखंड वक्फ बोर्ड ने अबतक अपना कोई नियमावली तैयार नहीं किया है। एस अली ने आगे बताया कि बोर्ड में आज भी बिहार के नियमावली 2004 के अनुसार कार्य हो रहे है। जो नियमित गलत है। वही, कल्याण विभाग को वक्फ एक्ट 1995 (संशोधित अधिनियम 2013) लागू होने के बाद हर हाल में वक्फ नियमावली बना देना जाना चाहिए था। जिससे वक्फ संपत्तियों के सर्वे, भूमि विवरण, अवस्था, नक्शा, अतिक्रमण, प्रबंधन मनमानी समेत अन्य कार्य को प्रमंडल आयुक्त व उपायुक्त से करवाया जा सके। वक्फ नियमावली बनने से गजट नोटिफिकेशन किया जा सकता था। बिहार वक्फ बोर्ड ने झारखंड वक्फ बोर्ड को अबतक सभी वक्फ सम्पत्ति का पूर्ण रुप से कागजात, लेखा जोखा भी उपलब्ध नहीं करया है। जिसके कारण विवादों से निपटारा में बोर्ड को कठनाई होती है। झारखंड राज्य सुन्नी वक्फ बोर्ड सरकार कि उपेक्षा का दंश झेल रहा है। जिसमें सुधार की जरूरत है।