निजी स्कूल री-एडमिशन, विकास शुल्क, खास दुकानदारों से पुस्तक व ड्रेस लेने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है। इस मामले के खिलाफ रोक और नियमनुसार कार्रवाई करने की मांग को लेकर झारखंड छात्र संघ ने शिक्षा सचिव के नाम पत्र लिखा है। इसके साथ ही इसकी प्रतिलिपि मुख्यमंत्री और मुख्य सचिव को भी दी है। झारखंड छात्र संघ के अध्यक्ष एस अली ने पत्रकारों को बताया कि राज्य के विभिन्न जिलों में संचालित सीबीएसई, आईसीएसई बोर्ड और बिना मान्यता के चल रहे स्कूल में इस तरह से अभिभावकों पर दवाब बनाया जा रहा है। इसके साथ ही ऐसी संस्थाए (स्कूल) आरटीई एक्ट 13 (1) (2) का खुलेआम उल्लंघन कर रही है।
उन्होंने कहा कि छात्रों के अभिभावकों से री-एडमिशन, विकास शुल्क, वार्षिक व बिल्डिंग शुल्क, वार्षिक कार्यक्रम समेत अन्य के नाम पर मोटी शुल्क वसूला जा रहा है। यही नहीं एनसीआरटी की किताबों का संचालन करने के बजाए निजी प्रकाशकों की मंहगी किताबें, जो हर वर्ष बदल दी जाती है, खास दुकानदारों से लेना के लिए ही बाध्य किया जाता है। यही व्यवस्था छात्रों के ड्रेस लेने को लेकर भी है। उन्होंने कहा कि निजी स्कूलों की इस मनमानी और तानाशाही के चलते अभिभावक परेशान है। अभिभावक इस परेशानी को नहीं बोलते है, क्योंकि उनके बच्चों की नामांकन कहीं कट ना जाए। जिसका फायदा लगातार निजी विद्यालयों द्वारा उठाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि नीजि विद्यालयों के मनमानी एवं कार्रवाई के लिए वर्ष 2015 और 2018 में स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के सचिव के निर्देश पर सभी जिला के उपायुक्त (रांची सहित) ने जिल शिक्षा अधिक्षक व अन्य जिला अधिकारियों का कमेटी गठन कर निजी स्कूलों के प्राचार्य व प्रबंधक के साथ बैठ की गयी थी। जिसमें री-एडमिशन, विकास शुल्क, वार्षिक शुल्क लेने पर रोक लगाया गया था। इसके साथ ही स्कूल परिसर या खास दुकानदार से किताब, ड्रेस, स्टेशनरी समेत अन्य समानों को खरीदने के लिए बाध्य नहीं करने का भी निर्देश दिया गया था। इसमें यह भी फैसला हुआ था कि किसी भी प्रकार के शुल्क वृद्धि से पहले स्कूल प्रबंधन, अभिभावक एवं शिक्षक के साथ बैठक कर निर्णय लेंगे। साथ ही हर वर्ष निजी स्कूल ऑडिट रिपोर्ट जिला शिक्षा अधीक्षक एवं जिला शिक्षा पदाधिकारी कार्यालय में जमा करने की बात कही गई थी। लेकिन वर्तमान में इसका अनुपालन निजी स्कूलों द्वारा नहीं किया जा रहा है। यह सरकार एवं शिक्षा विभाग के निर्देश का खुला उल्लंघन है। वहीं, अभिभावक की परेशानी को देखते हुए उन्होंने निजी स्कूलों कि मनमानी पर अविलंब रोक और नियमनुसार कानूनी कार्रवाई करने की मांग की है।