बिगाड़ के डर से ईमान की बात नहीं कहोगे, यह सूत्रवाक्य आज भी भारतीय पत्रकारिता में प्रासंगिक है। पत्रकार और कथाकार प्रेमचंद ने अपनी लेखनी के माध्यम से साहित्य और पत्रकारिता को समाज के आगे चलने वाली मशाल के रूप में स्थापित किया। परन्तु आज के वर्तमान दौर में पत्रकारिता प्रेमचंदयुगीन आदर्शों से भटक गई है। ये बाते सोमवार को प्रेमचंद जयंती पर उनको याद करते हुए पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ मुकेश कुमार ने कही। दरअसल आजादी का अमृत महोत्सव कार्यक्रम श्रृंखला के तहत मौलाना मजहरुल हक़ अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग में कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है। डॉ मुकेश ने पत्रकार के रूप में प्रेमचंद को याद करते हुए कहा कि उन्होंने ज़माना, हंस, माधुरी और जागरण के माध्यम से राष्ट्रचेतना से संबद्ध विचारों को जन-जन तक पहुंचाने का कार्य किया। सामाजिक सरोकारों और स्वदेशी के विचारों को उन्होंने पत्रकारिता के माध्यम से हर आम लोगों तक पहुंचाया है।
शिक्षक डॉ रणजीत ने कहा कि उनके देश की परिभाषा में समानता की बात थी। स्त्री-पुरुष, किसान-ज़मीदार, विभिन्न धर्म और जातियों और देश के नागरिकों के बीच आर्थिक समानता ही उनके लिए एक असल राष्ट्र का सही अर्थ था। उसमें सबसे पहली और महत्वपूर्ण बात यह है कि प्रेमचंद ने स्वाभिमान से लिखना सिखाया। डॉ निखिल आनंद ने कहा कि साहित्यकार अपने देशकाल से प्रभावित होता है, और मुंशी जी ने समसामयिक और प्रासंगिक साहित्य रचा। जब कोई लहर देश में उठती है, तो साहित्यकार के लिए अविचलित रहना संभव नहीं होता है और प्रेमचंद उनमें से एक थे। फ़ारसी विभाग के प्रभारी विभागाध्यक्ष डॉ जमशेद आलम ने मुंशी प्रेमचदं की कहानी नमक का दारोगा का वाचन किया। वही, गोदान को कालजयी रचना बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद अपने साहित्य के द्वारा हमेशा प्रासंगिक बने रहेंगें।
अरबी-फ़ारसी विश्वविद्यालय के पत्रकारिता विभाग में याद किए गए प्रेमचंद
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