झारखंड विधानसभा चुनाव को देखते हुये पुराने नेताओं को ज्वाइन कराने और एक से दूसरे पार्टी में आने-जाने का सिलसिला लगातार जारी हैं। इस दौरान झारखंड की राजनीति में कई उठा पटक भी देखे जा रहे हैं। इसकी क्रम में जदयू ने भी अपनी सक्रियता को बढ़ाया हैं। झारखंड की राजनीति में जदयू एक बार फिर से साल 2000 जैसा कद बढ़ाने की कवायद में जुटा हुआ हैं। जिसपर लगातार काम किये जा रहे हैं।
इसके मद्देनजर एक के बाद एक नये पुराने चेहरे को पार्टी से जोड़ा जा रहा है। अभी कुछ दिनों पहले ही निर्दलीय विधायक सरयू राय ने चुनाव चिह्न तीर का दामन थामा था। तो वही सोमवार को तमाड़ के पूर्व विधायक सह मंत्री रहे गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर को भी जदयू में शामिल कराया गया हैं। इस दौरान दिल्ली स्थित जदयू के केंद्रीय कार्यालय में राजा पीटर ने आज पार्टी की प्राथमिक सदस्यता ली हैं। दरअसल राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष संजय कुमार झा ने राजा पीटर को प्राथमिक सदस्यता दिलायी हैं। तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से राजा पीटर विधायक रहे हैं। ऐसा नहीं है कि राजा पीटर ने पहली बार जदयू का दामन थामा हैं। इससे पहले भी वे जदयू की टिकट पर तामड़ से चुनाव लड़ चुके हैं।
उपचुनाव में शिबू सोरेन को हराने के बाद राजा पीटर का बढ़ा था कद..
तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से विधायकी जीतने के बाद राजा पीटर ने झारखंड की राजनीति में अपना कद बढ़ाया था। दरअसल बात 2008 विधानसभा उप चुनाव की हैं। जब जदयू ने तमाड़ विधानसभा क्षेत्र से राजा पीटर को टिकट दिया था। उस वक्त राजा पीटर का सीधा मुकाबला दिशोम गुरु, पूर्व मुख्यमंत्री, जेएमएम सुप्रीमो सह केंद्रीय अध्यक्ष शिबू सोरेन से था। क्योंकि मुख्यमंत्री रहते शिबू सोरेन ने भी इसी विधानसभा सीट से उपचुनाव लड़ा था।
इस उपचुनाव में राजा पीटर ने शिबू सोरेन को शिकस्त दी। जिसके बाद उन्होंने झारखंड की राजनीति में खूब सुर्खियां बटोरी। हर तरफ इस बात की चर्चा थी कि राजा पीटर ने शिबू सोरेन को हराया। इस हार के बाद शिबू सोरेन को मुख्यमंत्री का पद गवाना पड़ा था। यह इस मायने में भी अहम था कि झारखंड की इतिहास में पहली बार ऐसा हुआ कि किसी सीटिंग मुख्यमंत्री को अपनी हार के बाद कुर्सी छोड़नी पड़ी थी। और सरकार अल्पमत में आ गया। जिसके बाद विधानसभा चुनाव कराये गये थे।
दरअसल बुंडू के एक स्कूल कार्यक्रम में विधायक रमेश सिंह मुंडा की दिनदहाड़े गोली माकर हत्या कर दी गयी थी। जिसके बाद तमाड़ विधानसभा का यह सीट खाली हो गया था। जिसको देखते हुये 2008 में उपचुनाव कराये गये थे। विधानसभा उपचुनाव की जीत के बाद एक बार फिर से 2009 में राजा पीटर पर जदयू ने विश्वास जताया। जहां तमाड़ से ही उन्हें विधानसभा की टिकट दी गयी। राजा पीटर जदयू के विश्वास पर खरा उतरे और चुनाव को भी जीता। इस दौरान एनडीए गठबंधन की सरकार में उन्हें मंत्री बनाया गया था।
वही, गोपाल कृष्ण पातर उर्फ राजा पीटर तमाड़ के बरलंगा टोला, कामारापा के रहने वाले हैं। टाटा स्टील में उनके पिता मोहन पातर काम करते थे। राजा पीटर की पढ़ाई लिखाई जमशेदपुर से हुई। जिसके बाद राजा पीटर ने भी टाटा स्टील में सालों तक नौकरी की। कुछ सालों बाद राजा पीटर तमाड़ की घरती यानी अपने घर वापस लौट आये। यहीं से उन्होंने राजनीतिक जमीन तराशनी शुरु की। राजा पीटर का राजनीतिक सफर बिरसा विकास समिति के बैनर तले 2005 में शुरु हुआ। जहां उन्होंने विधानसभा मद्देनजर पहला चुनाव लड़ा था। जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। वहीं, साल 2008 तमाड़ उपचुनाव के बाद से वे लगातार आगे बढ़ते चले गये।
हाईकोर्ट : रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड में है आरोपी, जमानत पर हुये रिहा ..
तमाड़ में 9 जुलाई 2008 को एक स्कूली कार्यक्रम में रमेश सिंह मुंडा की दिनदहाड़े गोली माकर हत्या कर दी गयी। पूर्व मंत्री रमेश सिंह मुंडा हत्याकांड के आरोपी नक्सली कुंदन पाहन ने राजा पीटर का नाम और उनकी भूमिका पर बयान दिया था। जिसके आधार पर राजा पीटर से पूछताछ की गयी। इस दौरान लंबे समय तक वे जेल में रहे थे।
वही, हत्याकांड मामले में इस केस को एनआईए की टीम ने 28 जून 2017 को टेक ओवर कर लिया था। जिसके बाद जांच के दायरे को आगे बढ़ाया गया। वहीं, इस दौरान राजा पीटर ने अदालत से कई बार जमानत की गुहार लगायी। लेकिन हर बार उनकी याचिका को खारिज कर दिया गया। जिसके बाद झारखंड हाईकोर्ट ने 13 दिसंबर 2023 में राजा पीटर को सशर्त जमानत प्रदान की। जिसमें दस-दस हजार के दो निजी मुचलके भरे गये थे। फिलहाल वे जमानत पर रिहा हैं।
विधानसभा चुनाव में जदयू का 2014 में खाता तक नहीं खुला था..
झारखंड में फिलहाल जदयू एनडीए गठबंधन में प्रमुख सहयोगी के तौर पर शामिल हैं। जदयू की ताकत झारखंड में वर्ष 2000 के बाद साल दर साल घटती चली गयी। बिहार से अलग होने के बाद झारखंड में जदयू का बेहतर प्रदर्शन रहा था।
झारखंड विधानसभा चुनाव पहली बार 2005 में हुआ था। इसमें पार्टी ने 18 सीटों पर प्रत्याशी उतारे थे। जिसमें जदयू को छह सीटों पर जीत मिली थी। उस वक्त भी एनडीए सरकार में जदयू की हिस्सेदारी थी। हालांकि, 2009 के बाद से जदयू के वोट प्रतिशत और सीटों में भी गिरावट आयी हैं। भाजपा गठबंधन में जदयू को 14 सीटें मिली थी। जिसमें सिर्फ दो सीटों पर पार्टी ने जीत दर्ज की। वहीं, विधानसभा चुनाव 2014 में भी पार्टी ने अपने दम पर चुनाव लड़ा था, लेकिन खाता तक खोल नहीं पायी थी।