इस्तीफा देने के लिए राज्यपाल राजेंद्र आर्लेकर के पास जाते समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार मन से उतने मजबूत नजर नहीं आ रहे थे। उनका बॉडी लैंग्वेज ढ़ीलाढ़ाला था। अमूमन में इस रूप वे नजर नहीं आते। इसके दो वजह माने जा रहे हैं। जिसको लेकर राजनीतिक गलियारों में चर्चा जोरों पर है। और हो भी क्यों ना। वे राजनीति के धुरंधर खिलाड़ी माने जाते हैं। इसी वजह से नौवीं बार सीएम के पद के नजदीक पहुंच चुके हैं या एक तरह से कहा जाए, सरकार बनती है, तो उनका सीएम बनना तय है। ऐसे में सवाल उठ रहे है कि पुराने के साथ इस्तीफे और नए साथी के साथ सरकार बनाने का दावा पेश करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस दफा केवल इस्तीफा सौंपकर ही क्यों आगे के फैसले की बात कहकर निकल गए???? अखिर क्या वजह रही होगी। जब बीजेपी के साथ जाना तय है, तो सरकार गठन को लेकर क्यों नहीं दवा किया गया। दरअसल बीजेपी पार्टी के दफ्तर में सुबह से ही गहमागहमी रही। वही, जदयू के साथ राजद दफ्तर में अबतक सन्नाटे के अंदर के मायने निकाले जा रहे है। यदि बात करे राजद दफ्तर की, तो यह बात समझ में आती है। लेकिन जदयू में यह होना समान्य नहीं है। राजनीतिक जानकारों की माने तो इसका जवाब मिल रहा है। जिसका आधार भाजपा के शर्त के तौर पर देखा जा रहा है। सूत्रों की माने तो बीजेपी ने साफ तौर पर कहा है कि पहले आप खुद जाकर इस्तीफा दें और हमारा विश्वास हासिल करें। एक और बात यह आ रही कि भाजपा राष्ट्रीय जनता दल के अगले कदम का इंतजार करने के बाद एकजुटता दिखाने के लिए जदयू के साथ राजभवन जाएगी।