झारखंड में नगर निकाय चुनाव कराने के आदेश पर रोक लगाने से हाईकोर्ट ने इंनकार कर दिया है। मामले की सुनवाई करते हुए एक्टिंग चीफ जस्टिस एस चंद्रशेखर और जस्टिस नवनीत कुमार खंडपीठ ने यह आदेश दिया। साथ ही मामले की जल्द से जल्द सुनवाई करने के लिए सरकार का आग्रह स्वीकार करते हुए दो सप्ताह बाद सुनवाई निर्धारित की। मालूम हो कि एकलपीठ ने जनवरी-2024 को तीन सप्ताह में नगर निकाय चुनाव की अधिसूचना जारी करने का आदेश सरकार को दिया था।
इधर, अपील याचिका में राज्य सरकार की ओर से कहा गया है कि पिछड़ा आयोग को ही डेडिकेटेड कमीशन के रूप में नियुक्त कर दिया गया है। यह राज्य के जिलों में ओबीसी की आबादी का आकलन करेगा और राज्य सरकार को डाटा उपलब्ध करायेगा। फिर उसी आधार पर निकाय चुनाव में वार्डों में ओबीसी आरक्षण दिया जायेगा। इसलिए निकाय चुनाव पूरा कराने के लिए समय दिया जाए। सरकार ने म्यूनिसिपल एक्ट के प्रावधानों का हवाला देते हुए नगर निगम में प्रशासक की नियुक्ति वैध बताई है। बताते चले कि राज्य में कुल 48 नगर निकाय हैं। इनमें 9 नगर निगम, 19 नगर परिषद और 20 नगर पंचायत शामिल हैं। 14 नगर निकायों में मई 2020 से ही चुनाव लंबित है। शेष 34 नगर निकायों का कार्यकाल अप्रैल 2023 को पूरा हो चुका है।
वहीं, याचिका में अपने दावे के समर्थन में प्रार्थी ने विभन्न पुस्तकों और पटना हाईकोर्ट के आदेशों का भी हवाला दिया है। प्रार्थी के अनुसार बीएचयू के शोध में भी इस बात का पता चला है कि कुर्मी भी इस देश के सबसे पुराने आदिवासी हैं। और छोटानापुर के पठार पर 65 हजार साल से रह रहे हैं। प्रार्थी की ओर से अदालत को बताया गया कि 1950 की अधिसूचना में भूल हुई है। और इसमें सुधार कर कुर्मियों को फिर एसटी सूची में शामिल करने का निर्देश दिया जाए।
समय पर चुनाव नहीं होना अनुचित
जनवरी में एकलपीठ ने तीन सप्ताह में सरकार को चुनाव की अधिसूचना जारी करने का निर्देश दिया था। कोर्ट ने अपने आदेश में टिप्पणी करते हुए कहा कि समय पर चुनाव नहीं कराना और चुनाव रोकना लोकतांत्रिक व्यवस्था खत्म करने जैसा है। यह संवैधानिक प्रावधानों के विपरीत भी है। ट्रिपल टेस्ट की आड़ में समय पर नगर निकाय चुनाव नहीं कराना अनुचित है। संविधान का अनुच्छेद-243 स्पष्ट करता है कि चुनाव समय पर कराना अनिवार्य है। इसके साथ ही अदालत ने पूर्व पार्षद रोशनी खलखो समेत अन्य की याचिका निष्पादित कर दी थी।