लोकसभा में सोमवार को अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में कमी लाने वाला मध्यस्थता विधेयक 2023 को आज ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। केंद्रीय विधि और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघालय ने विधेयक पर अल्प चर्चा का जवाब देते हुए कहा कि भारतीय परंपरा में ग्राम पंचायतें मध्यस्थता की भूमिका निभाती थीं। ब्रिटिश शासन आने के बाद पंचायतों की भूमिका कम होने लगी और लोग अदालतों की प्रक्रिया में उलझ गये। इस प्रकार में विधेयक लाने का पहली बार प्रयास प्रधानमंत्री नरेंद्र के नेतृत्व में किया गया। क्योंकि गांव और गरीब की समस्या को समाप्त करना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगस्त 2021 में यह विधेयक राज्यसभा में पेश कर, इसे स्थायी समिति में भेजा गया। समिति के भेजे गये 52 सुझावों में 27 सुझावों को छोड़कर सभी मान लिया गया। उन्होंने कहा कि मध्यस्थता के माध्यम से निकाले गये समाधान को लागू कराने के मामले में यह विधेयक कानून बनने के बाद महत्वपूर्ण भूमिका निभायेगा। विधेयक में मध्यस्थता की प्रक्रिया को लचीली और स्वैच्छिक प्रक्रिया बनाया गया है। यह किफायती प्रक्रिया है। जिसमें धन के साथ समय भी कम लगेगा। मेघवाल ने उम्मीद जतायी कि इस विधेयक के कानून बनने के बाद अदालतों में लंबित मामलों की संख्या में कमी आयेगी। उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय में क़रीब 70 हज़ार मुक़दमे लंबित है। इसी प्रकार उच्च न्यायालयों में 60 लाख 63 हज़ार तथा ज़िला अदालतों में चार करोड़ 43 लाख मुक़दमे लंबित है।