सुप्रीम कोर्ट ने पीवी नरसिम्हा राव मामले में 1998 के फैसले पर पुनर्विचार करने पर सहमति दे दी है। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने सात न्यायाधीशों की पीठ गठित करने का फैसला किया है। पीठ यह देखेगी कि क्या कोई सांसद अथवा विधायक सदन में भाषण देने या किसी विशेष तरीके से वोट देने को लेकर रिश्वत लेने के लिए अभियोजन से छूट का दावा कर सकता है। प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने कहा कि वह मामले पर नए सिरे से सुनवाई के लिए सात सदस्यीय पीठ गठित करेगी। दरअसल, 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई वाली पीठ ने इस अहम प्रश्न को पांच सदस्यीय पीठ के पास भेजते हुए कहा था कि इसके व्यापक प्रभाव हैं। यह सार्वजनिक महत्व का सवाल है।
तीन सदस्यीय पीठ ने क्या कहा था उस वक्त के तीन सदस्यीय पीठ ने तब कहा था कि वह झारखंड में जामा निर्वाचन क्षेत्र से झारखंड मुक्ति मोर्चा की विधायक सीता सोरेन की अपील पर सनसनीखेज झामुमो रिश्वत मामले में अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगी। जिसमें झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री सह पूर्व केंद्र मंत्री शिबू सोरेन के साथ चार सांसद शामिल है। जिन्होंने 1993 में तत्कालीन पीवी नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के विरोध में वोट देने के लिए रिश्वत ली थी। सीबीआई ने सोरेन और झामुमो के चार लोकसभा सांसद के खिलाफ मामला दर्ज किया था। लेकिन न्यायालय ने संविधान के अनुसार अनुच्छेद 105 (2) के तहत उन्हें अभियोजन से मिली छूट का हवाला देते हुए इसे रद्द कर दिया था।
झामुमो रिश्वत मामला पर सुप्रीम कोर्ट 1998 के फैसले पर करेगा पुनर्विचार
उच्चतम न्यायालय की सात सदस्यीय पीठ चर्चित 1993 झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) रिश्वत मामले में शीर्ष अदालत के 1998 के पांच सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले पर पुनर्विचार करेगी। यह फैसला बुधवार को मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति ए एस बोपन्ना, न्यायमूर्ति एमएम सुंदरेश, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की संविधान पीठ ने लिया।