राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग ने अधिसूचना के जरिये नए नियम देश में लागू किए हैं। इन नियमों के तहत डॉक्टर हिंसक रोगी के इलाज से मना कर सकता है। लेकिन डॉक्टर को यह जरूर देखना होगा कि ऐसा करने से कहीं उस मरीज की जान का जोखिम तो नहीं बढ़ जाएगा। इसके साथ ही किसी भी दवा अथवा कंपनी का विज्ञापन नहीं कर सकेंगे। अगर ऐसा कोई मामला सामने आता है, तो उनका लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है।
राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग (एनएमसी) ने करीब एक साल से लंबित पंजीकृत चिकित्सक व्यावसायिक आचरण विनियम संबंधी अधिसूचना को जारी किया। इसमें शामिल नए नियमों को बीते दो अगस्त से देशभर में लागू कर दिया गया है। नए नियमों के अनुसार, अगर किसी डॉक्टर अथवा उनके परिवार को कोई उपहार, यात्रा सुविधाएं, नकद या मौद्रिक अनुदान देता है, तो उक्त डॉक्टर का लाइसेंस निरस्त किया जा सकता है। इसके अलावा पंजीकृत डॉक्टर सेमिनार, कार्यशाला, संगोष्ठी या फिर सम्मेलन जैसे किसी भी तीसरे पक्ष की उन शैक्षिक गतिविधियों में शामिल नहीं हो सकेंगे। जिनका किसी फार्मा कंपनी का संबंध हो। अधिसूचना में साफ तौर पर स्पष्ट है कि किसी भी स्थिति में डॉक्टर उपहार नहीं ले सकते।
मरीज को देनी होगी हर जानकारी
नए नियमों के अनुसार सर्जरी या उपचार की लागत के बारे में पूरी जानकारी मरीज को देनी जरूरी है। यहां तक कि मरीज की जांच करने या इलाज शुरू करने से पहले उसे परामर्श शुल्क के बारे में बताना होगा। इसके बाद भी अगर कोई मरीज शुल्क नहीं देता है, तो डॉक्टर के पास यह अधिकार है कि वह उपचार के लिए इन्कार कर सकता है। लेकिन यह आपात स्थिति वाले रोगियों के साथ लागू नहीं होगा।
अगर किसी अस्पताल में उपचार कराने वाले मरीज को अपने दस्तावेज की जानकारी चाहिए, तो उक्त अस्पताल में संबंधित डॉक्टर को यह कार्य अधिकतम पांच दिन में करना होगा। अभी 72 दिन का समय दिया जाता है।
नाम के आगे मनचाही डिग्री नहीं लिखेंगे
आयोग ने अधिसूचना के मुताबिक, पंजीकृत डॉक्टर अपने नाम के आगे मनचाही डिग्री या कोर्स का नाम नहीं लिख सकते। इन्हें अपने नाम के आगे केवल एनएमसी की ओर से मान्यता प्राप्त अथवा मान्यता प्राप्त मेडिकल डिग्री/डिप्लोमा का नाम लिखना होगा। यह डिग्री या डिप्लोमा भी वही होगा, जिसके बारे में एनएमसी की वेबसाइट पर जानकारी मौजूद होगी। अगर कोई और डिग्री लिखते हैं, तो उसे अमान्य करार कर जुर्माना लगाने का प्रवधान है।